बहुभाषी युवा ज्यादा सफल होंगे : चार्ल्स थॉमसन

लंढौरा (हरिद्वार)। चमनलाल स्वायत्त महाविद्यालय में आयोजित विशेष व्याख्यान में ऑस्ट्रेलिया के हिंदी विद्वान डॉ. चार्ल्स एस. थॉमसन ने कहा कि भविष्य में वही युवा अधिक सफल होंगे जो एक से अधिक भाषाओं के जानकार होंगे। उन्होंने युवाओं से तकनीक (टेक्नोलॉजी) का सदुपयोग करते हुए बहुभाषी बनने पर जोर दिया।

महाविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वावधान में दो अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के विशेष व्याख्यान आयोजित किए गए। हिंदी और भारतीय संस्कृति पर कई दशकों से कार्य कर रहे डॉ. थॉमसन ने कहा कि आज हिंदी को समझने और बोलने वालों की संख्या अस्सी करोड़ से अधिक है। हिंदी की बढ़ती स्वीकार्यता के कारण निकट भविष्य में यह संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल हो सकती है। उन्होंने कहा कि हम सभी को हिंदी पर गर्व का अनुभव होना चाहिए और अंग्रेजी के दबाव से मुक्त होना चाहिए।

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डॉ. थॉमसन ने सोशल मीडिया के क्षेत्र में हिंदी के विस्तार पर चर्चा करते हुए कहा कि तकनीकी ज्ञान के साथ अधिकाधिक भाषाएं सीखना आवश्यक है। आज गूगल जैसी कंपनियाँ बहुभाषी युवाओं की तलाश में हैं। उन्होंने कहा कि आप जीवन में जो भी कार्य करें, उसमें पूर्ण दक्षता हासिल करें।

ताजिकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान प्रो. जावेद खोलोव ने कहा कि हिंदी विश्व की सबसे समृद्ध और श्रेष्ठ भाषाओं में से एक है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में हिंदी का महत्व और स्वीकार्यता निरंतर बढ़ रही है। आने वाले समय में हिंदी और अधिक प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में सामने आएगी।

उन्होंने भाषाई आधार पर ताजिकिस्तान और भारत के संबंधों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि ताजिक और हिंदी एक ही भाषाई परिवार से संबंध रखती हैं। इसलिए ताजिक भाषा में अनेक शब्द हिंदी से आए हैं, वहीं हिंदी में भी ताजिक शब्दों का प्रयोग होता है। उन्होंने भारत और ताजिकिस्तान के सांस्कृतिक संबंधों को बहुत गहरा बताया और कहा कि ताजिकिस्तान में शिव और पार्वती की ढाई हजार पुरानी मूर्ति प्राप्त हुई है, इससे पता चलता है कि दोनों देश सांस्कृतिक रूप से बहुत गहरे से जुड़े हुए हैं। इसे ताजिकिस्तान नेशनल म्यूजियम में रखा गया है।

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महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष रामकुमार शर्मा ने दोनों विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आने वाला समय निश्चित रूप से हिंदी का है। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा की उन्नति के साथ हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति जुड़ी हुई है।

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील उपाध्याय ने कहा कि भाषा विभिन्न संस्कृतियों और समाजों के बीच पुल का कार्य करती है। उन्होंने हिंदी को आज के समाज और विश्व की आवश्यकता बताते हुए कहा कि हिंदी विश्व की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक है। यही कारण है कि कंप्यूटर और सोशल मीडिया के क्षेत्र में हिंदी का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. आशुतोष शर्मा ने किया।आईक्यूएसी (IQAC) की समन्वयक डॉ. दीपा अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। डॉ. निशु कुमार, डॉ. ऋचा चौहान, डॉ. धर्मेंद्र कुमार और डॉ. हिमांशु कुमार का विशेष सहयोग रहा।

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